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Wednesday, October 12, 2011

नजरो से नजरे मिला ले जरा

आ मैखाने, नजरो से नजरे मिला ले जरा
उस जाम से ज्यादा नसा तेरी आँखों से छलकता है

मै तो निकलता हु रोज कि तुझे तनहा छोड़ दू ..
हर गली तेरे घर का पता है तो मेरी खता क्या है?..

दहाड़ता हु जंगलो में मै भी शेरो कि तरह..
थोड़ी सी कमी है कि दुबक जाता हूँ महफ़िल आकर

छलकता है जाम तेरे होटों पे आकर
कि मुझे जाम को जाम पिलाना नहीं आता..

आ मैखाने, नजरो से नजरे मिला ले जरा
उस जाम से ज्यादा नसा तेरी आँखों से छलकता है..

एक निगाह इधर भी घुमालो ए हसीं..
यहाँ कोई है जो दीदार को तरसता है.


Sunday, November 21, 2010

मुहब्बत सच और झूठ में नहीं फसती वो तो दिल से मन के बीच चलती है
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कब तक यू ही दूर भागोगे? कभी तो मुड़कर हमसे नजरे मिलावोगे॥
नजर मिलेगी तो बात भी होगी ॥ ऐसा तो नहीं कि मुह बंद कर मुह चिढावोगे ?
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मै कैसे कहू कि कब तक साथ दूंगा तेरा?
मै तो साया हू जब दिल करे पीछे मुड़कर देख लेना
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अब बस यही दुआ है कि तुम थोडा आराम करो तो मुझे कुछ चैन मिले
साया हू न कभी -कभी थक जाता हू
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बीते हुए लम्हे हमेशा दर्द भरे होते है ॥
इसलिए उन्हें अपने अरमानो के साथ ही जला देता हूँ मै
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कोई सास लेना भी कभी भूल सकता है भला?
वो तो ज़िंदा है मेरे दिल में धड़कने बनकर
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Tuesday, November 16, 2010

मेरी प्यारी सखी तेरे विरह कि पाती

मेरी प्यारी सखीः-
चाहे लाख बहारे आये और चली जाए
नई ऋतुए आये, मौसम बदल जाए।
ये मेरी अमर प्रेम की बगिया,
सदा जिंदा और आबाद रहेगी।

चाहे नये दौर का जमाना हो नया,
कोई तूफां आये और दुनिया सिमट जाए।
इस बसेरे की नीव, ईटे मुहब्बत से बनी है
आधार मजबूत और, बेदाग रहेगी।

चाहे जीवन में आये या कोई छोड़कर चला जाए,
कोई अपना बनाकर नये सपने दिखाए।
ये दिल हमेशा तुम्हारा रहा,
जो सदा तुम्हारे लिए धड़का, और धड़कता रहेगा।

बेगानी दुनिया में कोई किसी का पूरे जीवन-साथ नहीं देता,
कोई कुछ पल साथ चलता है, तो कोई हाथ भी नहीं देता।
मेरे मन की डोर तुम्हारे आत्मा से बंधी है,
इसे सदा तुम्हारा इन्तेजार रहा है, और मौत के बाद भी रहेगा।

ये दुनिया बड़ी संग्दिल है बड़ी जल्दी भूज जाती है।
चाहे कोई दिल में घर करे या मन में समाये।
जैसे धड़कनो को घड़काने की जरूरत नहीं होती
मेरी प्यारी सखीः-
तेरी विरह मुझे रूलाती रही है,
और ताउम्र मुझे तेरी याद दिलाती रहेगी।

Monday, November 15, 2010

ये ठोकर मेरी गलती कि सजा थी

"इसमें तेरी खता नहीं कि,
ये ठोकर मेरी गलती कि सजा थी,
चलने से पहले ही, निगाह की होती तो,
मखमल में दबे कंकड़ निगाह में होते॥
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आह पे आह लेते है तेरी आने कि आहात से,
दिल को यकीन नहीं होता कि तेरी आहात सिर्फ मेरी निगाह में है॥
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ओ हर बार गुनाह का इल्जाम पे इल्जाम लगते गए।
और मै शर्मिंदा होता रहा॥
sukra है उनकी बेवफाई का,,
जो ख्याल दिला गयी मै बेगुनाह था॥
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इतनी अनमोल धरोहर तुझपे लुटा बैठे ।
कुछ पअल के विह्स्वास पे जिंदगी दे बैठे ।
पता न थे खुले जो राज तेरे, मेरे जाने के बाद, वरना
सजी थी सूली, खुद कि जगह तुझे सुला देते॥
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जरा इधर भी