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Wednesday, October 12, 2011

नजरो से नजरे मिला ले जरा

आ मैखाने, नजरो से नजरे मिला ले जरा
उस जाम से ज्यादा नसा तेरी आँखों से छलकता है

मै तो निकलता हु रोज कि तुझे तनहा छोड़ दू ..
हर गली तेरे घर का पता है तो मेरी खता क्या है?..

दहाड़ता हु जंगलो में मै भी शेरो कि तरह..
थोड़ी सी कमी है कि दुबक जाता हूँ महफ़िल आकर

छलकता है जाम तेरे होटों पे आकर
कि मुझे जाम को जाम पिलाना नहीं आता..

आ मैखाने, नजरो से नजरे मिला ले जरा
उस जाम से ज्यादा नसा तेरी आँखों से छलकता है..

एक निगाह इधर भी घुमालो ए हसीं..
यहाँ कोई है जो दीदार को तरसता है.


जरा इधर भी